सुख के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
प्रभु राम से मांग लो, औषधि आराम की
दुःख निवारती दवा, राम जी के नाम की!!
आध्यात्मिक सुख क्या है?
अध्यात्म की
नज़र से देखें तो वास्तविकता में न सुख है, न दुख है। सुख-दु:ख तो मात्र एक विचार है। जब आप अपनी इनिद्रय की तृप्ति की कामना करते हैं, वह भोतिक जीवन है | जब आप भगवान की सेवा करने
की इच्छा करते हैं , वह आध्यात्मिक जीवन है | आध्यात्मिक सुख तब आते हैं जब हम भगवान को प्रसन्न करने की इच्छा
करते हैं | वह
आध्यात्मिक सुख है |
सुख तीन प्रकार के होते हैं – सात्त्विक, राजसिक एवं तामसिक!
आठ प्रकार के सुख होते हैं । देखने, सूँघने, चखने, सुनने और स्पर्श का सुख - ये पाँच विषय-सुख हुए । दूसरा, मान मिलता है तो सुख होता है, अपनी कहीं बड़ाई हो रही है तो सुख होता है । अगर आपको बढ़िया आराम मिलता है तो सुख होता है । तो शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, मान, बड़ाई और आराम - ये आठ प्रकार के सुख होते हैं ।
“मनुष्य-जगत में जितने प्रकार के सुख-अनुरागों की उत्पत्ति हुई है, उन सब को आठ प्रकार की जिन बड़ी-बड़ी श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं, वह निम्न प्रकार की हैं --
1. शरीर सम्बंधी कई सुख-अनुराग ।
2. "अहं" सम्बंधी कई सुख-अनुराग ।
3. संतान संबंधी सुख-अनुराग ।
4. धन संबंधी सुख-अनुराग ।
5. संस्कार, संग वा अभ्यास संबंधी सुख-अनुराग ।
6. हिंसा संबंधी सुखानुराग ।
7. मिथ्या-विश्वास संबंधी कई सुखानुराग ।
8. उच्च वा सात्विक भाव संबंधी कई सुखानुराग ।
सुख का
यदि शाब्दिक अर्थ देखे तो यह दो अक्षरों सु एवम ख से मिलकर बना है, सु का अर्थ है अच्छा
और ख का अर्थ है खालीपन, तो इस प्रकार सुख का अर्थ है अच्छा खालीपन। वैसे भी सुख शब्द
नकारात्मक ज्ञान कराता है, सुख अर्थात जहां अभाव है दुःख का, जहां पीड़ा का अभाव है
वही सुख है। सुख भी पूर्णतः चित्त निर्मित अवधारणा है जो सापेक्षिक है, अर्थात कम दुख
को भी सुख ही कहा जाता है। उधारण के लिए यदि हम देखे कि जब किसी के सर में पीड़ा है
तो वह कहता है कि मैं दुखी हूं, और उपचार के उपरांत जब उसे पूछो तो वह कहता है कि अब
वह सुखी है। तो देखा जा सकता है कि सुखी होने के लिए क्या उसने कुछ पाया? तो नही पीड़ा
को खोया है, तभी वह सुखी हो सका। सुख और दुख दोनो ही चित्त निर्मित अवस्था है जो पूर्णतः
विपरीत भाव है। तो क्या सभी सुखी हो सकते है? तो नही क्योंकि अस्तित्व में सभी संभावना
है जितनी सुख की संभावना है उतनी ही दुःख की भी रहेगी। सभी अनुभवों के मूल में नाद
होने के कारण ध्रुवीयता सदैव अस्तित्व में दिखाई पड़ेगी, कभी एक जैसा अनुभव नहीं होगा,
प्रत्येक अनुभव से विपरीत अनुभव की संभावना सदैव विद्यमान रहेगी। जो ज्ञानी है सुख
दुख के फेर से परे हो जाता है, वह तो जानता है कि वह आनंद स्वरूप है जहां सुख और दुख
दोनो का ही आभाव है।
भौतिक सुविधाएं के साथ सांसारिक
सुख
*सोलह
सुखों के बारे में सुना था तो जानिये क्या हैं वो सोलह सुख*
*1. पहला सुख निरोगी काया।*
*2. दूजा सुख घर में हो
माया।*
*3. तीजा सुख कुलवंती नारी।*
*4. चौथा सुख सुत आज्ञाकारी।*
*5. पाँचवा सुख सदन हो अपना।*
*6. छट्ठा सुख सिर कोई ऋण
ना।*
*7. सातवाँ सुख चले व्यापारा।*
*8. आठवाँ सुख हो सबका प्यारा।*
*9. नौवाँ सुख भाई और बहन
हो ।*
*10. दसवाँ सुख न बैरी स्वजन
हो।*
*11. ग्यारहवाँ मित्र हितैषी
सच्चा।*
*12. बारहवाँ सुख पड़ौसी
अच्छा।*
*13. तेरहवां सुख उत्तम
हो शिक्षा।*
*14. चौदहवाँ सुख सद्गुरु
से दीक्षा।*
*15. पंद्रहवाँ सुख हो साधु
समागम।*
*16. सोलहवां सुख संतोष
बसे मन।*
*सोलह
सुख ये होते भाविक जन।*
*जो
पावैं सोइ धन्य हो जीवन।।*
सुख हमारे जीवन को सुंदर बनाता है और हमें ताजगी और ऊर्जा प्रदान
करता है।
जो लोग
अपने जीवन से असंतुष्ट रहते हैं, उनका मन कभी भी शांत नहीं हो सकता है। सुख-शांति पाना
चाहते हैं तो जीवन में संतुष्टि होनी चाहिए।
*हालांकि आज के समय में ये सभी सुख हर किसी को मिलना मुश्किल है।
लेकिन इनमें से जितने भी सुख मिलें उससे खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।।
गोधन,गज धन बाज धन और रतन धन खान।
जब आवै संतोष धन,सब धन घूर समान ।।
"जो सुख को चाहे सदा,शरण राम की ले।"
"नानक दुखिया सब संसार,वह सुखिया जो नाम आधार।"
दुख और सुख सच में मन के विकल्प हैं। जिस व्यक्ति का मन उसके वश में है, वह सुखी कहलाता है। कारण कोई उसे उसकी इच्छा के बिना कष्ट नहीं दे सकता है। वह अपने मन अनुसार चलता है और जीवन जीता है। दुखी वह है, जो दूसरों के कहने पर चलता है या जिसका मन स्वयं के वश में न होकर अन्य के वश में है। वह उसकी इच्छानुसार व्यवहार करता है। उसे खुश करने के लिए ही सारे कार्य करता है। वह दूसरे के समान बनना चाहता है। अतः दूसरे के हाथ की कठपुतली बन जाता है। अतः दुख और सुख तो मन के विकल्प ही हैं। जिसने मन को जीत लिया वह उस पर शासन करता है, नहीं तो दूसरे उस पर शासन करते हैं।
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